जब कांग्रेस की परंपराओं और रिवाजों को बदला गया:
दिल्ली से तय हुआ पहाड़िया का नाम, सीएस भी वहीं से भेजा
“मैं राजस्थान बोल रहा हूं ….
शब्द हैं – वरिष्ठ पत्रकार ‘राजेंद्र बोड़ा’ के …
“विधानसभा के 1980 के चुनाव का काल … जहां भाजपा के उदय का समय था, वहीं कांग्रेस में स्थापित परंपराओं और रिवाजों के बदलने का भी समय था। हालांकि पहले एक बार बरकतुल्ला खान का मनोनयन दिल्ली में पार्टी आलाकमान के कहने से विधायक दल ने किया था। किन्तु शीघ्र ही हरिदेव जोशी ने जता दिया था कि यह फैसला स्थानीय तौर पर ही होगा।
लेकिन इस चुनाव में दिग्गजों के जीतकर आने के बावजूद राज्य में कौन मुख्यमंत्री होगा, यह फैसला दिल्ली में हुआ। इतिहास में पहली बार राजस्थान विधायक दल की बैठक जयपुर में नहीं होकर दिल्ली में हुई। इसमें सब को आश्चर्यचकित करते हुए संजय गांधी की पसंद से जगन्नाथ पहाड़िया को सर्वसम्मति से नेता चुना गया। पहाड़िया तब ‘बयाना’ से लोकसभा सदस्य और इंदिरा सरकार में वित्त राज्यमंत्री थे।
यदि यह माना जाए कि पहाड़िया का मुख्यमंत्री बनना पुरानी पीढ़ी की राजनीति को झकझोर कर युवाओं की क्रांति का संकेत था, तो यह प्रयोग बुरी तरह असफल रहा। एक साल में ही पहाड़िया की प्रशासनिक अक्षमता जाहिर हो गई और उन्हें मुख्यमंत्री बनाने वाले आलाकमान ने ही उनसे इस्तीफा ले लिया।
हालांकि, पहाड़िया अंत तक यह मानते रहे कि उनकी विदाई … संजय गांधी के वायुयान दुर्घटना में निधन के बाद , उनका कोई रहनुमा न रहने के कारण हुई। वास्तविकता यह थी कि पहाड़िया की निर्णय लेने की अक्षमता के कारण राज्य का प्रशासन इस हद तक पंगु हो गया था कि पार्टी आलाकमान को उन्हें दिल्ली बुला कर चेताना पड़ा। इस पर भी जब हालत नहीं सुधरी।
सचिवालय में फाइलों के अंबार बढ़ते ही गए। तब दिल्ली से पहाड़िया को सूचित किया गया कि दिल्ली में योजना आयोग में लगे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एम. एम. के. वली को राज्य का मुख्य सचिव बना कर जयपुर भेजा जा रहा है।
वली को तुरत-फुरत में दोपहर को योजना आयोग से मुक्त किया गया और उनसे कहा गया कि वे उसी रात जयपुर पहुंच कर राज्य के मुख्य सचिव का पद ग्रहण करें। इसकी जानकारी तत्कालीन मुख्य सचिव को भी नहीं थी। पहली बार मुख्यमंत्री कार्यालय तेज गति से काम करता नज़र आया।
मुख्यमंत्री के सचिव ने सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव अनिल कुमार, जो बाद में मुख्यसचिव पद से सेवा निवृत्त हुए, से कहा कि वे हवाई अड्डे जाकर वली को वहां से सीधे सचिवालय लेकर आए और उन्हें मुख्य सचिव का पद ग्रहण कराएं।
बड़ी अजीब स्थिति थी, … क्योंकि मुख्य सचिव की नियुक्ति के आदेश मुख्यमंत्री के तरफ से निकलते हैं मगर ऐसा आदेश जारी ही नहीं हुआ था। यह पूछने पर कि क्या वर्तमान मुख्य सचिव को इस बदलाव का पता है? अनिल कुमार से कहा गया कि उसे छोड़ो, मुख्यमंत्री उन्हें छुट्टी पर जाने का कह देंगे।
अनिल कुमार ने जब नए मुख्य सचिव की नियुक्ति के लिखित में आदेश मांगे तो मुख्यमंत्री की तरफ से कहा गया कि वे बिना देरी किए हवाई अड्डे पहुंचें और जो कहा गया है, वो करें। बाकी औपचारिकताएं बाद में होती रहेंगी।
वली ने दिल्ली से रवाना होते हुए राज्य के मुख्य सचिव जी. के. भनोत, जिनकी जगह वे लेने वाले थे, को फोन किया तो जवाब मिला कि “मुझे तो पता नहीं । मैं तो कल से एक हफ्ते के सरकारी दौरे पर जा रहा हूं। ” … इस प्रकार वली ने आधी रात को सचिवालय जाकर मुख्य सचिव का पद ग्रहण किया।
“मैं राजस्थान बोल रहा हूं ….
शब्द हैं – वरिष्ठ पत्रकार ‘राजेंद्र बोड़ा’ के …
“विधानसभा के 1980 के चुनाव का काल … जहां भाजपा के उदय का समय था, वहीं कांग्रेस में स्थापित परंपराओं और रिवाजों के बदलने का भी समय था। हालांकि पहले एक बार बरकतुल्ला खान का मनोनयन दिल्ली में पार्टी आलाकमान के कहने से विधायक दल ने किया था। किन्तु शीघ्र ही हरिदेव जोशी ने जता दिया था कि यह फैसला स्थानीय तौर पर ही होगा।
लेकिन इस चुनाव में दिग्गजों के जीतकर आने के बावजूद राज्य में कौन मुख्यमंत्री होगा, यह फैसला दिल्ली में हुआ। इतिहास में पहली बार राजस्थान विधायक दल की बैठक जयपुर में नहीं होकर दिल्ली में हुई। इसमें सब को आश्चर्यचकित करते हुए संजय गांधी की पसंद से जगन्नाथ पहाड़िया को सर्वसम्मति से नेता चुना गया। पहाड़िया तब ‘बयाना’ से लोकसभा सदस्य और इंदिरा सरकार में वित्त राज्यमंत्री थे।
यदि यह माना जाए कि पहाड़िया का मुख्यमंत्री बनना पुरानी पीढ़ी की राजनीति को झकझोर कर युवाओं की क्रांति का संकेत था, तो यह प्रयोग बुरी तरह असफल रहा। एक साल में ही पहाड़िया की प्रशासनिक अक्षमता जाहिर हो गई और उन्हें मुख्यमंत्री बनाने वाले आलाकमान ने ही उनसे इस्तीफा ले लिया।
हालांकि, पहाड़िया अंत तक यह मानते रहे कि उनकी विदाई … संजय गांधी के वायुयान दुर्घटना में निधन के बाद , उनका कोई रहनुमा न रहने के कारण हुई। वास्तविकता यह थी कि पहाड़िया की निर्णय लेने की अक्षमता के कारण राज्य का प्रशासन इस हद तक पंगु हो गया था कि पार्टी आलाकमान को उन्हें दिल्ली बुला कर चेताना पड़ा। इस पर भी जब हालत नहीं सुधरी।
सचिवालय में फाइलों के अंबार बढ़ते ही गए। तब दिल्ली से पहाड़िया को सूचित किया गया कि दिल्ली में योजना आयोग में लगे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एम. एम. के. वली को राज्य का मुख्य सचिव बना कर जयपुर भेजा जा रहा है।
वली को तुरत-फुरत में दोपहर को योजना आयोग से मुक्त किया गया और उनसे कहा गया कि वे उसी रात जयपुर पहुंच कर राज्य के मुख्य सचिव का पद ग्रहण करें। इसकी जानकारी तत्कालीन मुख्य सचिव को भी नहीं थी। पहली बार मुख्यमंत्री कार्यालय तेज गति से काम करता नज़र आया।
मुख्यमंत्री के सचिव ने सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव अनिल कुमार, जो बाद में मुख्यसचिव पद से सेवा निवृत्त हुए, से कहा कि वे हवाई अड्डे जाकर वली को वहां से सीधे सचिवालय लेकर आए और उन्हें मुख्य सचिव का पद ग्रहण कराएं।
बड़ी अजीब स्थिति थी, … क्योंकि मुख्य सचिव की नियुक्ति के आदेश मुख्यमंत्री के तरफ से निकलते हैं मगर ऐसा आदेश जारी ही नहीं हुआ था। यह पूछने पर कि क्या वर्तमान मुख्य सचिव को इस बदलाव का पता है? अनिल कुमार से कहा गया कि उसे छोड़ो, मुख्यमंत्री उन्हें छुट्टी पर जाने का कह देंगे।
अनिल कुमार ने जब नए मुख्य सचिव की नियुक्ति के लिखित में आदेश मांगे तो मुख्यमंत्री की तरफ से कहा गया कि वे बिना देरी किए हवाई अड्डे पहुंचें और जो कहा गया है, वो करें। बाकी औपचारिकताएं बाद में होती रहेंगी।
वली ने दिल्ली से रवाना होते हुए राज्य के मुख्य सचिव जी. के. भनोत, जिनकी जगह वे लेने वाले थे, को फोन किया तो जवाब मिला कि “मुझे तो पता नहीं । मैं तो कल से एक हफ्ते के सरकारी दौरे पर जा रहा हूं। ” … इस प्रकार वली ने आधी रात को सचिवालय जाकर मुख्य सचिव का पद ग्रहण किया।
पहाड़िया की छुट्टी के बाद हालात कैसे बदले ? …. सुनिए कल, ग्यारवें भाग में…
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“मैं राजस्थान बोल रहा हूं ….
कल आपने सुना राजस्थान की राजनीति के नए सितारे के उभरने की कहानी।
आज सुनिए … शेखावत युग की शुरुआत के किस्से ….
“राजस्थान की पहली गैर कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व करने के लिए जनता पार्टी विधायक दल में शेखावत का मुकाबला पुराने कांग्रेस नेता मास्टर आदित्येन्द्र से हुआ। आदित्येन्द्र राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे।