छत्तीसगढ़

कांग्रेस की 6 सीटों का पूरा एनालिसिस:BJP के ‘मोदी और राम’ से निपटने बड़े चेहरे किए सामने;भूपेश के आने से बढ़ेगी चुनावी गर्मी

कांग्रेस ने 6 टिकटों की घोषणा कर दी है। 6 में से 3 पिछली सरकार के कद्दावर नेता थे, पूर्व मुख्यमंत्री और दो मंत्री। भाजपा ने राजनीतिक बिसात पर जिस तरह के मोहरे बिठाए हैं, उनके सामने बड़े नेताओं को लाना ही था। कांग्रेस विधानसभा चुनाव में 71 से 35 सीट पर आ गई, यानी आधी सीटें।

चेहरा भूपेश बघेल थे, लिहाजा सारा दारोमदार उन पर ही था। कांग्रेस में इस समय छत्तीसगढ़ में उनसे बड़ा चेहरा नहीं था और अगर वे नहीं उतरते तो शायद इस चुनाव में रस नहीं आता। दोनों मंत्रियों के पास पिछली सरकार में बड़ी प्रोफाइल थी। वे सामाजिक समीकरण में भी फिट बैठते हैं, लिहाजा उन्हें टिकट दिया गया।

भाजपा सांसद संतोष पांडेय के सामने पूर्व सीएम भूपेशा बघेल के उतरने से राजनांदगांव में चुनावी गर्मी बढ़ेगी।
भाजपा सांसद संतोष पांडेय के सामने पूर्व सीएम भूपेशा बघेल के उतरने से राजनांदगांव में चुनावी गर्मी बढ़ेगी।

सबसे बड़ा सवाल- भूपेश को राजनांदगांव में लड़वाने से क्या फर्क पड़ेगा

राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र विधानसभा सीटों के हिसाब से कांग्रेस के लिए मजबूत सीट है। राजनांदगांव में ओबीसी की संख्या ज्यादा है। भूपेश बघेल ओबीसी वर्ग से आते हैं। भाजपा से ब्राह्मण कैंडिडेट और वर्तमान सांसद संतोष पांडेय मैदान में हैं। संतोष पांडेय के लिए निश्चित रूप से भूपेश के उतरने से चुनौती बढ़ेगी।

अब मोदी का चेहरा और राम का नाम संतोष पांडेय के काम आएगा। वे अग्रेसिव लीडर हैं। बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर भी उन्होंने मोर्चा संभाला था, लेकिन राजनांदगांव में भूपेश बघेल के आने से उन्हें थोड़ी परेशानी हो सकती है। दूसरा यह कि राजनांदगांव से ही पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी विधायक हैं।

डा. रमन सिंह भी अपने बेटे अभिषेक सिंह को राजनांदगांव से चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने संदेश दिया कि परिवारवाद से दूरी बनानी होगी। डा. रमन सिंह बेहद लोकप्रिय चेहरा हैं, लेकिन बेटे को टिकट न मिलने के बाद उनके चेहरे की लोकप्रियता का कितना फायदा संतोष पांडेय को मिल सकेगा, ये बाद में पता चलेगा।

भूपेश बघेल के चुनाव लड़ने से राजनांदगांव की सीट भी हॉट सीट हो गई है। हालांकि खुद भूपेश बघेल कह चुके हैं कि वे पूरे प्रदेश में पार्टी के लिए काम करना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने जो फैसला लिया है, उसके मुताबिक काम करेंगे। यानी कहीं न कहीं वे भी इस समय केंद्र की राजनीति में नहीं जाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुलाने का फैसला किया है।

कोरबा से कांग्रेस ने ज्योत्सना महंत को टिकट दिया है, लेकिन असली मुकाबला उनके पति चरणदास महंत और सरोज पांडेय के बीच है।
कोरबा से कांग्रेस ने ज्योत्सना महंत को टिकट दिया है, लेकिन असली मुकाबला उनके पति चरणदास महंत और सरोज पांडेय के बीच है।

कोरबा में चरणदास महंत वर्सेस सरोज पांडेय

कोरबा में कांग्रेस ने एक बार फिर ज्योत्सना महंत को कैंडिडेट बनाया है। 2019 में मोदी की लहर थी। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जिन दो सीटों पर कांग्रेस आई थी, उनमें एक कोरबा की थी और एक बस्तर। पार्टी ने मोदी लहर में भी जीतकर आने वाली ज्योत्सना महंत को इसीलिए टिकट दिया है।

हालांकि ये चुनाव ज्योत्सना महंत और भाजपा की सरोज पांडेय के बीच नहीं है, बल्कि उनके पति और नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत और भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय के बीच है। इस बात में कोई शक नहीं कि इस क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता चरणदास महंत ही हैं।

पिछली सरकार में वे विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका में थे और उससे पहले कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की रेस में भी। उनकी राजनीति को लोग इस तरह से देखते हैं कि वे कहते कुछ नहीं और कर सबकुछ जाते हैं। भूपेश बघेल अगर केंद्र में जाते हैं तो सबसे ताकतवर कांग्रेस नेता के रूप में चरणदास महंत ही राज्य में होंगे।

इसके बाद पार्टी की तस्वीर भी बदलेगी। हालांकि चरणदास महंत के लिए भी ज्योत्सना महंत को चुनाव जिताना चुनौती है। पिछले पांच सालों में कोरबा क्षेत्र में कांग्रेस से लोगों ने नाराजगी जताई है और इसका असर विधानसभा चुनाव में दिख चुका है। यहां की आठ विधानसभा में से 6 भाजपा, 1 गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सिर्फ 1 सीट कांग्रेस के पास है। सिर्फ रामपुर की सीट कांग्रेस के पास है। यानी यहां जनता कांग्रेस से नाराज है।

बिहारी और बाहरी का फार्मूला चल रहा कोरबा में

सरोज पांडेय के लिए कोरबा की राह इतनी आसान नहीं है। वहां अभी से नारा लग रहा है बिहारी और बाहरी का। सरोज पांडेय दुर्ग से जाकर कोरबा में चुनाव लड़ रही हैं। ऐसा फैलाया जा रहा है कि वे बिहारी ब्राह्मण हैं, जबकि ज्योत्सना महंत को स्थानीय बताया जा रहा है। अगर सरोज पांडेय सिर्फ मोदी के चेहरे और राम के भरोसे रहीं, तो उन्हें मुश्किल हो सकती है। उन्हें बिहारी और बाहरी का काट सोचकर रखना होगा। कांग्रेस के लोग सामाजिक बैठकों में इस बात का प्रचार कर रहे हैं।

बृजमोहन के आगे कितने टिकेंगे विकास

भाजपा ने राज्य के सबसे कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर लोकसभा की सीट से उतारकर चौकाया था। अब कांग्रेस ने रायपुर पश्चिम के पूर्व विधायक विकास उपाध्याय को मैदान में उतारा है। विकास राजेश मूणत से बुरी तरह हारे हैं। बृजमोहन अग्रवाल के आगे उनका अनुभव बहुत कम है। हालांकि वे संसदीय सचिव भी रह चुके हैं।

विधानसभा चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जिस तरह हुआ, उसका साफ असर दिखा। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल पर हमले के बाद जो माहौल बना, उससे उन्हें सबसे बड़ी लीड मिली और विकास उतनी ही बुरी तरह अपनी विधानसभा में हारे। उनकी हार का सबसे बड़ा कारण था क्षेत्र में कोई बड़ा काम न हो पाना।

विकास के चेहरे की लोकप्रियता थी, मगर लोगों ने राजेश मूणत के कामों से तुलना की, तो कुछ भी काम नहीं मिला। अब रायपुर की लोकसभा में ही जब वे जनता के बीच जाएंगे, तो काम न कराने की आलोचना और सवाल तो झेलना पड़ेगा ही, साथ ही बृजमोहन जैसे बरगद के सामने जमने में मुश्किल होगी। बृजमोहन खेमा इस समय इस बात को लेकर चर्चा नहीं कर रहा कि कैसे जीतेंगे। उनकी चिंता इस बात की है कि लीड कितनी बड़ी होगी।

दुर्ग में भूपेश की ही चली, ताम्रध्वज को शिफ्ट होना पड़ा

उधर, सरकार जाने के बाद भूपेश बघेल कमजोर हुए हैं, ऐसा सोचने वालों को उन्होंने एक और उत्तर दे दिया है। चर्चा यह थी कि मंत्री चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे थे। ऐसे में ताम्रध्वज साहू भी अनमने से थे, लेकिन उन्होंने दुर्ग से ही लड़ने की इच्छा जताई थी। लेकिन दुर्ग में भूपेश बघेल ने अपने करीबी राजेंद्र साहू को टिकट दिलाई। ताम्रध्वज साहू को महासमुंद शिफ्ट होना पड़ा।

अब दुर्ग में भाजपा के विजय बघेल और कांग्रेस के राजेंद्र साहू के बीच मुकाबला होगा। चूंकि यह टिकट भूपेश बघेल की पसंद से मिली है, लिहाजा पूर्व CM को दो मोर्चों राजनांदगांव और दुर्ग दोनों जगह लड़ना होगा। अप्रत्यक्ष रूप से यह लड़ाई फिर चाचा और भतीजा के बीच मानी जा सकती है। कुर्मी और साहू समाज के बीच द्वंद्व देखने को मिलेगा। मोदी लहर और राम का असर इस क्षेत्र में भी बहुत है।

महासमुंद से साहू कैंडिडेट मिल गया

भाजपा ने रूप कुमारी चौधरी को टिकट दिया है, जबकि पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू यहां कांग्रेस के कैंडिडेट घोषित हो गए हैं। अरसे बाद ऐसा हुआ है कि भाजपा ने साहू कैडिंडट नहीं दिया। माना जाता है कि महासमुंद साहू बहुल क्षेत्र है। यहां से धनेंद्र साहू को उतारने की भी चर्चा थी, लेकिन वे भी पीछे रह गए।

साहू बहुल होना इस समय कांग्रेस के पक्ष में है, लेकिन पूर्व गृहमंत्री जिस कारणों से हारे, उसकी चर्चा क्षेत्र में होने लगेगी, तो उन्हें भी थोड़ी परेशानी हो सकती है। दुर्ग में वे अपने रिश्तेदारों की करतूतों के कारण हारे। इन सबके बावजूद महासमुंद के मुकाबले की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है। यहां भी भाजपा रामभरोसे है और कांग्रेस साहू समाज के भरोसे।

जांजगीर चांपा में कमलेश वर्सेस शिव डहरिया

जांजगीर एससी सीट है। शिव डहरिया के लिए सबसे बड़ी ताकत की बात यह है कि जांजगीर की आठों विधानसभा सीटें इस समय कांग्रेस के पास है। यानी कांग्रेस पहले ही मजबूत स्थिति में हैं। लेकिन जब हम पिछली लोकसभा को याद करते हैं, तो पता चलता है कि पूरे छत्तीसगढ़ में उस वक्त कांग्रेस के पास 68 सीटें थीं।

लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने सिर्फ दो सीटों कोरबा और बस्तर में ही जीत दर्ज की। मोदी लहर का आलम यह था कि राजस्थान की 25 में से 25, मध्यप्रदेश में 29 में 28 और छत्तीसगढ़ में 11 में 9 सीटों पर भाजपा या एनडीए ने जीत दर्ज की। इस लिहाज से तीनों स्टेट में छ्तीसगढ़ ने ही बेस्ट परफॉर्मेंस दिया था। अब यह शिव डहरिया पर निर्भर है कि वे चुनाव किस तरह से लड़ते हैं कि जीत दर्ज कर सकें। कमलेश जांगड़े महिला हैं। भाजपा को यहां भी मोदी और राम पर पूरा भरोसा है।

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Ankita Sharma

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