अयोध्या में राम की 15 सखियां:राम के नाम का सिंदूर, गालियां भी राम के लिए, राम को जीजा मानता है सखी समुदाय

सुबह 5 बजे उठ जाती हूं। नहा-धोकर रामजी की पूजा करती हूं। फिर उनके नाम का सिंदूर लगाती हूं। मेरी तरह और भी सखियां हैं, सब रामजी के लिए सजती हैं। हम उनकी साली हैं, इसलिए उन्हीं के लिए सजते-संवरते हैं। अगर सजेंगे नहीं, तो जीजाजी बुरा मान जाएंगे।’
ये सरस्वती शरण हैं। उम्र- 50 साल। पहचान- राम की सखी। सरस्वती शरण 30 साल से अयोध्या में हैं। अमेठी जिले के जगदीशपुर कस्बे में रहते थे। कम उम्र में ही घर से भागकर अयोध्या आ गए थे। यहां एक गुरुजी से दीक्षा ली और उन्हीं के साथ रहने लगे। अभी कनक महल के पास किराए के कमरे में रहते हैं।
सरस्वती शरण अयोध्या के सखी समुदाय का हिस्सा हैं। इस समुदाय के लिए दो मान्यताएं हैं,
पहली: वनवास से लौटते वक्त राम इन्हें अयोध्या ले आए थे।
दूसरी: ये सीता के विवाह के बाद उनके साथ मिथिला से अयोध्या आई थीं।
ये महिलाएं थीं या फिर किन्नर, पुराणों और दंत-कथाओं में इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं है, लेकिन आज भी सखी समुदाय राम और सीता की सेवा में लगा है। कम ही लोग इस समुदाय के बारे में जानते हैं। हां… जो अयोध्या के कनक मंदिर गए हैं, उन्होंने जरूर इनका आशीर्वाद लिया होगा।
ये सखियां मां सीता को बहन मानती हैं, लिहाजा राम उनके जीजा हुए। इसी रिश्ते के कारण वे भगवान को छेड़ती हैं, प्यार से उन्हें गालियां देती हैं। उनके लिए नाचती हैं, उनकी बलाएं लेती हैं।
चाहे हनुमान गढ़ी हो या कनक महल, सखी समुदाय के लोग इन जगहों को अपनी अंतिम भूमि मानते हैं। अभी अयोध्या में सिर्फ 15 सखियां हैं। सभी राम मंदिर बनने से बहुत खुश हैं। कहती हैं, ये खुशी इतनी है कि समाती नहीं।
ये सखियां कौन हैं, कहां से आती हैं, क्या करती हैं, इनकी कहानी क्या है, ये जानने भास्कर कनक महल पहुंचा। कनक महल इसलिए क्योंकि सखी समुदाय अयोध्या में सिर्फ यहीं सेवा देता है। ये जगह राम मंदिर से 100 कदम दूर है।
शाम होते ही कनक महल मंदिर भक्तों से भर जाता है। तभी एक गीत सुनाई देता है- बड़ा प्यारा लागे रघुबीर मोरी सजनी… ये गीत सखियां ही गाती हैं। हाथ में लाल चूड़ियां और पीतल के पतले कंगन पहने सखियां चटक रंग की साड़ियां पहनती हैं।
मंदिर में लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। भक्त जय श्रीराम के जयकारे लगा रहे थे, दूसरी तरफ सखियां तेज और भारी आवाज में भगवान से मजाक करते हुए गालियों से भरे गीत गा रही हैं। दर्शन करके लौटती महिलाएं सखियों के पास जाकर दक्षिणा देती हैं। बदले में सखियां उन्हें आशीर्वाद देती हैं। मंदिर में मौजूद बाकी लोगों से इनकी पहचान अलग है।
सखी समुदाय पूरे दिन अयोध्या के मंदिरों के चक्कर लगाता है, लेकिन शाम के 4 बजते ही कनक महल पहुंच जाते हैं। यही वक्त है, जब कनक महल के दरवाजे खुलते हैं। यहां वे आते हैं, अपने जीजाजी यानी भगवान राम को छेड़ने।
सखी समुदाय में राम के लिए गारी गाने का रिवाज है। गारी का मतलब गाली ही है, पर ये अपशब्द नहीं हैं। सालियां ये गारी अपने जीजाजी, यानी राम को छेड़ने के लिए बोलती हैं। जैसे ‘गारी गावत राजदुलारी…जीवत रामजी लला’। ये गारी श्रीराम की लंबी उम्र के लिए गाई जाती है।
अब इन सखियों की बात
50 साल पहले घर छोड़ा, शोभनाथ से शोभा बन गए
कनक महल में हमें 66 साल के शोभनाथ या कहें शोभा दिखे। गीत गाते हुए नाच रहे थे। सुल्तानपुर के रहने वाले शोभनाथ 50 साल पहले घर छोड़कर अयोध्या आ गए। यहां उन्हें दयावती ने शरण दी। दयावती तब अयोध्या के सखी समुदाय की मुखिया थीं।
दयावती ने शोभनाथ को दीक्षा दी और उन्हें नया नाम मिला- शोभा। तभी से शोभा सखी समुदाय का हिस्सा हैं।
कनक महल से हनुमान गढ़ी की ओर जाने वाले रास्ते पर संकरी गलियों से होते हुए हम शोभा के घर पहुंचे। एक कोठरी नुमा छोटा सा कमरा है, जिसमें शोभा अकेले रहती हैं। कमरे के एक कोने में खाना बनाने की जगह है। दूसरी तरफ पलंग बिछा है। बीच में भगवान शंकर की फोटो है।

भारी आवाज में शोभा कहती हैं, ‘हम सुल्तानपुर के रहने वाले हैं। बचपन बहुत गरीबी में बीता। खाने तक के पैसे नहीं थे। 3 भाई थे, जिनमें हम थोड़ा अलग थे, इसलिए घर में रहने नहीं दिया गया। मां चाहती थीं कि हम घर पर रहें, लेकिन बाऊजी ने मना कर दिया।’
’15 साल उम्र थी, जब अयोध्या दीक्षा लेने आ गए। हमारी सखी गुरु दयावती ने 30 बरस तक अपने पास रखा। फिर हम हनुमान गढ़ी के पास किराए का कमरा लेकर रहने लगे। अब इस कुटिया में रहते हैं। इसका किराया 1 हजार रुपए महीना देते हैं।’
‘पिता अब नहीं रहे। उनके देहांत के बाद कभी-कभी भाइयों से मिलने घर जाते हैं, लेकिन रुकते नहीं हैं। ज्यादा देर राम से दूर रहेंगे, तो वे नाराज हो जाएंगे।’
राम के लिए 14 साल इंतजार किया, वनवास के बाद वही अयोध्या लेकर आए
शोभा भगवान राम और सखी समुदाय से जुड़ी कहानी सुनाती हैं। ये कहानी उनके गुरु ने उन्हें सुनाई थी। वे कहती हैं, 14 साल का वनवास मिलने पर राम अयोध्या से जा रहे थे। पूरे नगर ने उन्हें जाते देखा। सबने बहुत रोकने की कोशिश की, लेकिन राम नहीं रुके। भरत अयोध्या लौटे तो उन्हें राम के वन जाने के बारे में पता चला।
वे तुरंत उनकी खोज पर निकल पड़े। उनके साथ माता कौशल्या और दशरथ की दोनों छोटी रानियां थीं। अयोध्यावासी भी थे, जो राम को देखना चाहते थे। इन्हीं लोगों में कुछ किन्नर थे।
भगवान राम ने भरत के साथ माताओं और लोगों को देखा तो वे निराश हो गए। उन्होंने सभी नर-नारियों और माताओं को लौटने के लिए मना लिया। किन्नर न नर में थे, न नारी में। वो अपने लिए कोई स्पष्ट आदेश न होने की वजह से वहीं ठहर गए। उन्होंने राम का 14 साल तक इंतजार किया।
रावण वध के बाद राम लंका से लौट रहे थे, तब उन्हें रास्ते में किन्नर दिखाई पड़े। राम ने उनसे वहां रुकने का कारण पूछा तो सभी ने पूरी बात उन्हें बताई। किन्नरों की बात सुनकर राम भावुक हो गए और कहा- तुम सब मेरे साथ अयोध्या चलो और वहीं खुशी से रहना। इसके बाद से ही सखी समुदाय अयोध्या में राम की सेवा कर रहा है।
राम के नाम का सिंदूर, उन्हीं के लिए सजना-संवरना
शोभा के घर से थोड़ा आगे उडुप्पी मंदिर है। यहां सरस्वती शरण मिले। वे कहते हैं, ‘अयोध्या आने के बाद 2 साल तक गुरुजी के साथ रही। घर-घर जाकर पैसे मांगती थी। फिर शोभा दीदी से मिली। उन्होंने कनक महल के पास 2000 रुपए में कमरा दिलवा दिया। अब उन्हीं की तरह सखी बन गई हूं।’

सरस्वती के कमरे में राजेश्वरी और रामसखी भी रहती हैं। सभी ने कम उम्र में घर छोड़ दिया था। अयोध्या में फिलहाल 15 सखियां हैं, जो हर दिन मंदिर में नाचती हैं। यहां मिली दक्षिणा ही इनकी कमाई है।
रहने के लिए कोई घर नहीं देता, पब्लिक टॉयलेट में रोकते हैं
राम के लिए गाते, नाचते और हंसी-ठिठोली करते हुए सखियां बहुत खुश नजर आती हैं। हालांकि, इनके जीवन में कई परेशानियां हैं। परिवार इन्हें अपनाना नहीं चाहता और समाज साथ रखने पर पाबंदी लगाता है। ज्यादातर सखियां दूसरे जिलों से आकर अयोध्या में रह रही हैं। इस वजह से उन्हें सरकारी सुविधाएं जैसे राशन और गुजारा भत्ता नहीं मिलता।
सरस्वती कहती हैं, ‘हमारे पास न तो राशन कार्ड है, न ही कोई स्थायी पता। इसलिए हमें किसी सरकारी स्कीम का फायदा नहीं मिलता। शहर में आसानी से कोई कमरा देने के लिए तैयार नहीं होता। घाटों पर और शहर में बने पब्लिक टॉयलेट यूज करने से रोका जाता है।’

अगर किसी सखी की मौत हो जाती है, तब आप लोग क्या करते हैं? जवाब में सरस्वती कहती हैं, ‘हम 24 घंटे तक उसके परिवार का इंतजार करते हैं। खबर देने के बावजूद अगर कोई नहीं आता तो हम सभी मिलकर सरयू घाट पर दाह संस्कार कर देते हैं।’
संत बोले- नर, नारी, किन्नर सब बन सकते हैं सखी
सखी समुदाय आखिर है क्या? कौन लोग सखी बनते हैं? अयोध्या में कुल कितनी सखियां हैं? इन सवालों का जवाब जानने हम अयोध्या के सबसे पुराने मठ-गुरुकुल साकेत भवन पहुंचे।
यहां हमें आचार्य स्वामी डॉ. श्रीधराचार्य मिले। वे कहते हैं, ‘वैष्णव समाज में ऐसे बहुत मंदिर हैं, जहां सखी परंपरा की मान्यता है। दिव्य कला, लक्ष्मण किला मंदिर में जो भी शिक्षित होते हैं, वे खुद को भगवान की सखी मानते हैं। उसी आधार पर उनकी उपासना होती है।’
डॉ. श्रीधराचार्य कहते हैं, ‘सखी परंपरा में किन्नर, नारी और नर कोई भी शामिल हो सकता है। एक बार दीक्षा लेकर आपको सखी बनकर ही जीवन भर पूजा करनी पड़ेगी।’
‘आज से 70-80 साल पहले अयोध्या में लक्ष्मण किला, सरयू सदन, दिव्य कला, रूप कला मंदिर के महंत खुद को भगवान की सखी मानते थे। इसलिए आपको जो लोग कनक महल में नाचते दिखते हैं, वे नर भी हो सकते हैं और किन्नर भी। उनकी उपासना का ढंग ही यही है कि नारी की तरह सजकर भगवान के लिए बधाइयां गाएं।’
गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र से भी अयोध्या आती हैं सखियां
अयोध्या में कुल कितनी सखियां हैं? इस सवाल पर श्रीधराचार्य कहते हैं, ‘यहां सखियों की तो कोई विशेष गणना नहीं हैं, लेकिन भगवान के जन्मोत्सव, दीपावली और दशहरे पर पूरे देश की सखियां अयोध्या आ जाती हैं। इनमें वृंदावन से लेकर गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की सखियां होती हैं। ये सब अपना सौभाग्य मानती हैं कि उन्हें प्रभु के जन्मदिवस पर अयोध्या आने का मौका मिला।’
‘अयोध्या में कुछ सखियां हैं, जो ऐसे सजती हैं कि देखकर कोई कह नहीं सकता कि वे स्त्री नहीं हैं। यहां कुछ महात्मा हैं, जिनकी मूंछ है, लंबी दाढ़ी है, फिर भी नाक में नथ और कान में बालियां पहनते हैं। भगवान का जहां भी भजन-कीर्तन होता है, वहां जाकर नाचने-गाने लगते हैं। न्यौछावर लेकर आशीर्वाद देते हैं। उनके अंतर्मन में ये भाव समा गया है कि हम भगवान की सखी हैं और इसी रूप में रहकर पूरा जीवन काटेंगे।’
राजा जनक ने सीता के लिए मिथिला से अयोध्या भेजीं थी दासियां
वेदांती मंदिर के आचार्य ज्ञानेश्वर दास कहते हैं, ‘त्रेता युग में राजा-महाराजा जब भी अपनी पुत्री का विवाह करते थे, तो विदाई में उनकी सेवा के लिए दासियां भेजी जाती थीं। ये दासियां राजकुमारी के शृंगार से लेकर निजी कामों में मदद करती थीं।’
‘राम और सीता के विवाह के बाद राजा जनक ने मिथिला से अयोध्या रथ, हाथी-घोड़े और असंख्य मणियों के अलावा दासियां भी भेजी थीं। आज अयोध्या में सखी समुदाय के लोग हैं, वे खुद को मिथिला का मानते हैं। भले ही कभी मिथिला गए न हों।’
आचार्य ज्ञानेश्वर दास कहते हैं, गोस्वामी तुलसी दास ने भी रामायण में लिखा है- मानही सब ही राम के नाते, यानी जो राम जी से नाता जोड़ेगा, राम जी भी उससे उसी भाव से जुड़ जाएंगे। इसलिए लोग राम से रिश्ता जोड़ लेते हैं।