

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने मिशन अस्पताल प्रबंधन को तगड़ा झटका देते हुए 1000 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन पर प्रशासन का दावा बरकरार रखा है। अदालत ने क्रिश्चियन वुमन बोर्ड ऑफ मिशन और सचिव नितिन लारेंस द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिससे अब जिला प्रशासन इस बहुमूल्य जमीन पर अधिकार स्थापित करने के लिए स्वतंत्र है।
मामला लगभग तीन दशकों पुराना है। वर्ष 1994 में समाप्त हुई लीज के बाद भी अस्पताल परिसर की 11 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा बनाए रखा गया और उसका व्यवसायिक उपयोग किया गया। इस दौरान अस्पताल प्रबंधन ने विभिन्न संस्थाओं को परिसर का बड़ा हिस्सा किराए पर देकर भारी आय अर्जित की, जो कि लीज शर्तों के स्पष्ट उल्लंघन में आता है।
तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण द्वारा इस अनियमितता की जांच कराई गई, जिसके बाद जमीन पर कब्जे की प्रक्रिया शुरू हुई। प्रशासन के फैसलों को अदालत में चुनौती दी गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य शासन की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों और तर्कों को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया कि लीजधारकों ने अपने कानूनी और नैतिक कर्तव्यों का पालन नहीं किया।
जस्टिस ए.के. प्रसाद ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता न केवल शर्तों का उल्लंघन कर रहे थे, बल्कि अदालत को भ्रमित करने का प्रयास भी कर रहे थे। उनके द्वारा प्रस्तुत पावर ऑफ अटॉर्नी को भी अदालत ने अवैध माना। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला न तो मौलिक अधिकारों का है और न ही इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता है।
अब इस निर्णय के बाद प्रशासन को कानूनी रूप से जमीन वापस लेने का पूरा अधिकार मिल गया है। यह फैसला राज्य प्रशासन के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है, जो लंबे समय से इस सार्वजनिक संपत्ति को कब्जे से मुक्त कराने के लिए संघर्ष कर रहा था।