शिवराज की विदाई..15 महीने, 5 संकेत और 2 सवाल:लाड़ली बहना भी एक वजह रही, क्या अब 3000 रुपए महीने खाते में आएंगे
विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत
विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत। ‘लाड़ली बहना’ का शोर और चार महीने बाद लोकसभा चुनाव। इन सबके बाद भी शिवराज सिंह चौहान पूर्व मुख्यमंत्री हो गए। आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब जानने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। भाजपा के संकेतों को समझना होगा।
17 अगस्त 2022। भाजपा संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन होता है। शिवराज इस बोर्ड के पूर्व सदस्य हो जाते हैं। उनका बयान आता है- ‘पार्टी कहेगी तो दरी भी बिछाऊंगा।’ उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं होने लगती हैं। चुनाव आते हैं और फिर गीत गूंजता है.. ‘मोदी के मन में एमपी और एमपी के मन में मोदी’। 15 महीने की इस लघुकथा के कई मायने हैं। और सवाल भी।
सबसे बड़ा सवाल यही कि क्या लाड़ली बहना योजना भी शिवराज के जाने की एक वजह रही? इसमें कोई संदेह नहीं है कि जीत में ‘लाड़ली बहना’ भी बड़ा फैक्टर रही, लेकिन चुनाव से पहले इस योजना की पृष्ठभूमि और रिजल्ट के बाद पार्टी की जीत में इसके ‘योगदान’ पर बहस से कई सवाल निकले। स्वीकार्यता को लेकर भी।
दरअसल भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सैद्धांतिक तौर पर इस तरह की फ्रीबीज वाली योजनाओं से कभी सहमत नहीं रहा है। सतना में सालभर पहले एक कार्यक्रम में PM मोदी ने कहा था- ‘रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत खतरनाक है।’ यही वजह रही कि इस योजना के बारे में उन्होंने चुनावी सभाओं में चर्चा नहीं की।
भाजपा के घोषणा पत्र में भी सिर्फ इतना जिक्र किया- हम 1.31 करोड़ लाड़ली बहनों को मासिक आर्थिक सहायता प्रदान करते रहेंगे। वहीं, शिवराज इस योजना के तहत हर महीने तीन हजार रुपए तक देने का वादा करते रहे। रिजल्ट के बाद तो ‘लाड़ली बहना’ पर बात टकराव तक पहुंच गई।
..तो अब ‘लाड़ली बहना’ का क्या होगा?
– 1250 रुपए हर महीने महिलाओं के खाते में आते रहेंगे, क्योंकि पार्टी के घोषणा पत्र में मासिक आर्थिक सहायता का वादा किया गया है। राशि 3000 रुपए तक बढ़ेगी, इसकी संभावना अब कम लगती है।
शिवराज को हटाने के 5 संकेत जो पार्टी पहले ही दे चुकी थी..
पार्टी ने प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की जो मंशा 15 महीने पहले इशारों में जता दी थी, उस पर अमल चुनाव के दौरान शुरू हुआ। हर कदम उसी दिशा में आगे बढ़े। संकेत साफ थे…
- पहला संकेत : शिवराज चेहरा नहीं, जिक्र भी नहीं
– मध्यप्रदेश में पूरे चुनाव अभियान के दौरान सभाओं में नेताओं ने भाजपा सरकार के कामों का जिक्र तो किया, लेकिन मुख्यमंत्री का नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर सभा में अपनी गारंटी दी। केंद्र की योजनाओं पर ज्यादा फोकस रहा।
- दूसरा संकेत : जनआशीर्वाद यात्रा में कई चेहरे
– पिछले चुनावों में जनआशीर्वाद यात्रा निकलती रही है। इनका नेतृत्व शिवराज ने ही किया और वे यात्रा में एकमात्र चेहरा हुआ करते थे। इस बार एक यात्रा की बजाय कई यात्राएं निकलीं। चेहरे भी कई। भाजपा शासित दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री आए।
- तीसरा संकेत : कई दिग्गजों को उतार दिया
– केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल से लेकर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतारकर पार्टी ने संकेत दे दिया था कि मप्र में कोई एक चेहरा नहीं होगा। मोदी के चेहरे के साथ चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। पिछले चुनावों की तरह प्रचार अभियान मुख्यमंत्री पर केंद्रित नहीं रहा।
- चौथा संकेत : लाड़ली बहना की बात नहीं
– चुनाव के दौरान शिवराज का पूरा फोकस लाड़ली बहना पर रहा, लेकिन मोदी-शाह ने इस योजना का जिक्र नहीं किया। शिवराज से जुड़े लोग रिजल्ट के बाद इस योजना को गेमचेंजर बताते रहे, लेकिन किसी बड़े नेता ने सीधे तौर पर ऐसा नहीं माना। पार्टी के बहुमत को मोदी का जादू बताया। इस तर्क के साथ कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कहां लाड़ली बहना थी। वहां भी जीते हैं।
- पांचवां संकेत : चुनाव अभियान की कमान केंद्र के हाथ में
– चुनाव अभियान की पूरी बागडोर पार्टी हाईकमान ने अपने हाथों में रखी। अमित शाह ने हर संभाग में बैठकें लेकर जिला स्तर तक के पदाधिकारियों से सीधे बात की। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव उनके दूत बनकर भोपाल में ही डटे रहे। शिवराज की भूमिका चुनावी रणनीति में सीमित रही।
..और आखिरी में सबको राम-राम
– विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद शिवराज सिंह ‘मिशन 29’ यानी एमपी में लोकसभा की सभी 29 सीटें जिताने का टारगेट लेकर मैदान में उतर गए। वे पहले छिंदवाड़ा, फिर श्योपुर गए। दोनों जिलों में पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई।
अब खुद की ओर से संकेत देने की बारी थी। सोशल मीडिया पर विधायक दल की बैठक के एक दिन पहले लिखा ‘सभी को राम-राम।’
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