माघ महीने का शुक्ल पक्ष 10 से 24 फरवरी तक:14 दिनों में रहेंगे 6 बड़े व्रत-त्योहार, 24 फरवरी को खत्म होगा पवित्र महीना

माघ महीने का शुक्ल पक्ष 10 तारीख से शुरू होगा और 24 फरवरी तक रहेगा। इन 14 दिनों में 6 बड़े व्रत-पर्व रहेंगे। इनमें किए गए स्नान-दान और पूजा-पाठ से जाने-अनजाने हुए पाप खत्म हो जाते हैं और कई गुना पुण्य भी मिलता है।
कुंभ संक्रांति (13 फरवरी): इस तारीख को सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ में आ जाएगा। सूर्य के राशि परिवर्तन करने से इस दिन सूर्य संक्रांति पर्व मनेगा। इस दिन किए गए तीर्थ-स्नान और दान से पुण्य बढ़ जाता है और पाप खत्म होता है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष में सूर्य कुंभ राशि में रहता है।
वसंत पंचमी (14 फरवरी): इसे श्री पंचमी करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक इस दिन देवी सरस्वमी का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस पर्व पर विद्यारंभ संस्कार की भी परंपरा है। कई जगहों पर इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है और इस दिन हर तरह के शुभ और खास कामों की शुरुआत की जाती है।
रथ सप्तमी (16 फरवरी): श्रीकृष्ण ने युधिष्ठर को इस व्रत का महत्व बताया था। इस व्रत से कम्बोज के राजा यशोधर्मा को बूढ़ा हो जाने पर भी संतान हुई। वो निरोग और चक्रवर्ती राजा हुआ। मत्स्य पुराण के मुताबिक, इस तिथि पर भगवान सूर्य को रथ मिला था। इसलिए इसे रथ सप्तमी कहते हैं। भविष्य पुराण में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है।
जया एकादशी (20 फरवरी): माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत किया जाता है। माघ महीने के दौरान इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म होते हैं। इस दिन तिल का दान करने से कई यज्ञों के फल जितना पुण्य मिलता है। विद्वानों का कहना है कि इस दिन व्रत और पूजा से मोक्ष मिलता है।
भीष्म द्वादशी (21 फरवरी): भीष्म द्वादशी पर्व माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। ये व्रत भीष्म पितामह के निमित्त किया जाता है। इस दिन महाभारत के भीष्म पर्व का पाठ किया जाता है। साथ ही भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। माघ महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी पर भीष्म पितामह ने शरीर छोड़ा था। लेकिन उनके लिए तर्पण, श्राद्ध और अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड द्वादशी तिथि पर भी किए जाते हैं।
माघ पूर्णिमा (24 फरवरी): माघ महीने के आखिरी दिन जब चंद्रमा मघा नक्षत्र में सूर्य के सामने सिंह राशि में होता है तब ये पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर तीर्थ-स्नान और दान करने का महत्व ग्रंथों में बताया गया है। ये दिन भगवान की पूजा के साथ ही ऋषियों और पितरों को खुश करने के लिए भी खास माना जाता है। इस दिन किए गए तीर्थ-स्नान और तिल के दान से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।