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दहशत में नक्सली: अमित शाह के दौरे से पहले नक्सलियों का शांति वार्ता का प्रस्ताव, सरकार से संघर्ष विराम की अपील

जगदलपुर। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे से पहले नक्सलियों ने भारत सरकार को पत्र जारी कर संघर्ष विराम की पेशकश की है। यह पत्र सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय ने जारी किया है, जो तेलुगु भाषा में लिखा गया है। इसमें नक्सलियों ने सरकार से शांति वार्ता शुरू करने की अपील करते हुए कुछ शर्तें रखी हैं।

संघर्ष विराम और सैन्य अभियानों को रोकने की मांग

नक्सलियों ने पत्र में कहा है कि यदि सरकार अपने सैन्य अभियान बंद करती है और सुरक्षा बलों को माओवादी इलाकों से हटाती है, तो वे भी संघर्ष विराम के लिए तैयार हैं। पत्र में लिखा है, “हम भारत सरकार से मांग करते हैं कि वह तत्काल प्रभाव से सभी सैन्य अभियानों को रोके। हमारी ओर से भी हम लड़ाई रोकने को तैयार हैं, लेकिन यह तभी संभव होगा जब सरकार अपने सुरक्षा बलों को माओवादी इलाकों से हटाए और उग्रवाद विरोधी अभियानों को निलंबित करे।”

ऑपरेशन ‘कागर’ का विरोध

पत्र में ‘ऑपरेशन कागर’ का कड़ा विरोध किया गया है। नक्सलियों ने आरोप लगाया कि इस अभियान के तहत उनके साथियों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और निर्दोष आदिवासियों को झूठे मामलों में फंसाकर जेलों में डाला जा रहा है। पत्र में कहा गया, “यह सरकार की आदिवासी विरोधी और दमनकारी नीति का हिस्सा है। हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं।”

सुरक्षा बलों की वापसी की मांग

नक्सलियों ने पत्र में सरकार से मांग की है कि वह उन क्षेत्रों से सुरक्षा बलों को हटाए, जहां ग्रामीणों को प्रताड़ित किया जा रहा है। पत्र में कहा गया, “सैनिकों की तैनाती से हमारे समुदायों का जनजीवन प्रभावित हो रहा है। जब तक सुरक्षाबल इन इलाकों से वापस नहीं जाते, तब तक शांति की कोई संभावना नहीं है।”

आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की अपील

पत्र में सरकार से आदिवासी इलाकों में चल रही खनन परियोजनाओं को बंद करने की भी मांग की गई है। नक्सलियों ने कहा कि जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा के लिए वे संघर्ष कर रहे हैं और सरकार की नीतियां आदिवासियों के हितों के खिलाफ हैं।

मानवाधिकार हनन का आरोप

नक्सलियों ने पत्र में सुरक्षा बलों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि ‘ऑपरेशन कागर’ के तहत हजारों आदिवासियों को जबरन हिरासत में लिया गया है और कई निर्दोष महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं। उन्होंने सरकार से इन कथित ज्यादतियों को रोकने की मांग की है।

बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार संगठनों से अपील

पत्र में देश के बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों, पत्रकारों, छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं से अपील की गई है कि वे सरकार पर दबाव बनाएं और शांति वार्ता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहयोग करें।

शांति वार्ता के लिए शर्तें

सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय द्वारा जारी पत्र में नक्सलियों ने शर्तें रखी हैं। नक्सलियों ने सभी सैन्य अभियानों को तत्काल रोकने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि ऑपरेशन कागर जैसी कार्रवाई बंद की जाए। इसके अलावा, उन्होंने जेलों में बंद निर्दोष ग्रामीणों और नक्सली कैदियों को रिहा करने की शर्त रखी है। नक्सलियों ने नए इलाकों में सुरक्षाबलों की तैनाती पर भी रोक लगाने की मांग की है।

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सरकार के सख्त रुख के बीच पत्र का आना महत्वपूर्ण

गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि सरकार की सख्त कार्रवाई के चलते नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 2024 में 12 से घटकर 2025 में 6 रह गई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 31 मार्च 2026 तक भारत को नक्सलवाद मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है और ऑपरेशन कागर के तहत नक्सलियों पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है।

गृहमंत्री अमित शाह के दौरे से ठीक पहले आया यह पत्र संकेत देता है कि माओवादी अब सुरक्षा बलों की बढ़ती कार्रवाई के दबाव में हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस प्रस्ताव को लेकर क्या रुख अपनाती है, क्या शांति वार्ता की संभावनाएं बढ़ेंगी या ऑपरेशन ‘कागर’ को और तेज किया जाएगा?

Ankita Sharma

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