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छत्तीसगढ़: मस्जिदों में राजनीति रोकने के वक्फ बोर्ड के फैसले पर सियासी घमासान, BJP ने बताया जरूरी कदम, ओवैसी बोले- ‘दीन पर पाठ नहीं चाहिए’

वक्फ बोर्ड का आदेश: मस्जिदों में राजनीति रोकने की पहल,ओवैसी का विरोध: 'संविधान के खिलाफ' बताया आदेश, BJP का समर्थन: 'फसाद रोकने का सही कदम', पूर्व चेयरमैन और मुतवल्लियों का विरोध: आदेश को अव्यवहारिक कहा, राजनीतिक और धार्मिक विवाद हुआ तेज

छत्तीसगढ़ में वक्फ बोर्ड के एक आदेश ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में हलचल मचा दी है। बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने मस्जिदों में जुमे की तकरीरों से पहले अनुमति लेने का निर्देश जारी किया है। इस फैसले को मस्जिदों में राजनीतिक बयानबाजी रोकने का प्रयास बताया गया है, लेकिन AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कई अन्य लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया है। बीजेपी ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है, जिससे राज्य में सियासी गर्मी बढ़ गई है।

वक्फ बोर्ड का आदेश: राजनीतिक बयानबाजी रोकने की पहल

छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने मस्जिदों में जुमे की नमाज के बाद होने वाली तकरीरों के लिए बोर्ड से अनुमति लेने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि मस्जिदों को राजनीति का अड्डा बनने से रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। डॉ. सलीम ने बताया कि शिकायतें मिली थीं कि कुछ मुतवल्ली (मस्जिद प्रबंधक) राजनीतिक भाषण दे रहे हैं, जिनमें CAA का विरोध, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुसलमानों का दुश्मन बताने और वक्फ बिल के खिलाफ बयानबाजी शामिल है।

ओवैसी का विरोध: ‘संविधान का उल्लंघन’ बताया

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “क्या अब बीजेपी हमें बताएगी कि दीन क्या है? क्या अपने दीन पर चलने के लिए इजाजत लेनी होगी?” ओवैसी ने इस निर्देश को संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के खिलाफ बताते हुए इसे अवैध करार दिया।

बीजेपी का जवाब: ‘फसाद रोकने का प्रयास’

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के मीडिया सलाहकार पंकज झा ने ओवैसी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं है। उन्होंने कहा कि मस्जिदों में तकरीरों के कारण कई बार सामाजिक फसाद हुए हैं, जिससे लोगों का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में संविधान किसी भी मजहब से ऊपर है।”

पूर्व चेयरमैन और मुतवल्लियों का विरोध

वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सलाम रिजवी ने इस आदेश को अवैधानिक बताते हुए कहा कि बोर्ड का काम वक्फ संपत्तियों का संरक्षण करना है, न कि मस्जिदों की तकरीरों को नियंत्रित करना। उन्होंने सवाल किया कि क्या बोर्ड के पास इतना स्टाफ है कि वह हजारों मस्जिदों से अनुमति प्रक्रिया संभाल सके?

मुतवल्लियों ने भी इस आदेश का विरोध किया है। पारस नगर मस्जिद के मुतवल्ली अरशद अशरफी ने कहा कि अगर वक्फ बोर्ड को राजनीतिक भाषणों की जानकारी है, तो उसे सार्वजनिक करना चाहिए।

राजनीतिक और धार्मिक माहौल गरमाया

वक्फ बोर्ड के इस आदेश पर राज्य में राजनीतिक और धार्मिक बहस तेज हो गई है। जहां बीजेपी इसे सही कदम बता रही है, वहीं मुस्लिम नेताओं और कई संगठनों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है। राज्य में इस फैसले के दीर्घकालिक प्रभावों पर चर्चाएं जारी हैं।

News Desk

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