बस्तर में ऐतिहासिक आत्मसमर्पण: पूना मारगेम के तहत 210 माओवादी कैडर मुख्यधारा में लौटे, डीजीपी बोले – अब यह साथी शांति और विकास के दूत बनेंगे


जगदलपुर। बस्तर पुलिस के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’ के तहत शुक्रवार को एक ऐतिहासिक पहल देखने को मिली, जब दण्डकारण्य क्षेत्र के 210 माओवादी कैडरों ने हिंसा का मार्ग त्यागकर सामाजिक मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिया। जगदलपुर के पुलिस लाइन में आयोजित इस प्रेरणादायक आत्मसमर्पण समारोह में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अरुण देव गौतम मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक मांझी-चालकी स्वागत से हुई। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी कैडरों का स्वागत संविधान की प्रति और शांति के प्रतीक लाल गुलाब भेंट कर किया गया। समारोह में नक्सल उन्मूलन प्रभारी एडीजी विवेकानंद सिन्हा, सीआरपीएफ बस्तर रेंज प्रभारी, कमिश्नर डोमन सिंह, बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी., कलेक्टर हरिस एस, सभी जिलों के पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
‘पूना मारगेम’: पुनर्वास से पुनर्जीवन की ओर कदम
डीजीपी अरुण देव गौतम ने कहा कि “पूना मारगेम का अर्थ केवल नक्सलवाद से दूरी बनाना नहीं, बल्कि जीवन को नई दिशा देना है। जो आज लौटे हैं, वे बस्तर में शांति, विकास और विश्वास के दूत बनेंगे।” उन्होंने आत्मसमर्पित माओवादियों से आह्वान किया कि वे अब अपनी ऊर्जा और अनुभव को समाज निर्माण में लगाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए बस्तर का भविष्य उज्ज्वल बन सके।
कार्यक्रम के दौरान पुलिस विभाग ने आत्मसमर्पित कैडरों को पुनर्वास सहायता राशि, आवास, स्वरोजगार एवं आजीविका से जुड़ी योजनाओं की जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन इन युवाओं को कौशल विकास, शिक्षा और सम्मानजनक जीवन के अवसर प्रदान कर रहा है।
मांझी-चालकी प्रतिनिधियों ने दी शांति की सीख
बस्तर की पारंपरिक व्यवस्था मांझी-चालकी के प्रतिनिधियों ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि बस्तर की संस्कृति सदैव प्रेम, सहअस्तित्व और शांति का प्रतीक रही है। उन्होंने कहा कि जो साथी अब लौटे हैं, वे इस परंपरा को और मजबूत करेंगे।
153 हथियारों का समर्पण: हिंसा से शांति की ऐतिहासिक यात्रा
समर्पण करने वाले माओवादी कैडरों ने कुल 153 हथियार पुलिस के समक्ष जमा किए, जिनमें AK-47, SLR, INSAS, LMG जैसी अत्याधुनिक राइफलें शामिल थीं। यह सामूहिक हथियार समर्पण न केवल हिंसा के अंत का प्रतीक था, बल्कि नए जीवन की शुरुआत का भी संकेत बना।
यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में माओवादी कैडरों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया। आत्मसमर्पित कैडरों में शीर्ष माओवादी नेता सीसीएम रूपेश उर्फ सतीश, डीकेएसजेडसी सदस्य भास्कर उर्फ राजमन मांडवी, रनीता, राजू सलाम, धन्नू वेत्ती उर्फ संतू, आरसीएम रतन एलम सहित अनेक वरिष्ठ माओवादी शामिल हैं।
नक्सल उन्मूलन नीति के ऐतिहासिक परिणाम
राज्य सरकार की व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति, पुलिस और सुरक्षा बलों के समन्वित प्रयासों तथा स्थानीय समाज के सहयोग से यह ऐतिहासिक आत्मसमर्पण संभव हो सका है। यह दण्डकारण्य क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक पुनर्समावेशन माना जा रहा है।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह परिवर्तन केवल आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में शांति, विकास और विश्वास की नई नींव है। लगातार संवाद और पुनर्वास की नीति ने सैकड़ों कैडरों को हिंसा का मार्ग छोड़कर लोकतांत्रिक जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
संविधान की शपथ लेकर लोकतंत्र की राह पर
समारोह के अंत में सभी आत्मसमर्पित माओवादी कैडरों ने संविधान की शपथ ली और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की। पुलिस बैंड द्वारा “वंदे मातरम्” की गूंज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ, जिसने पूरे वातावरण को देशभक्ति और उम्मीद की भावना से भर दिया।
यह ऐतिहासिक आत्मसमर्पण न केवल बस्तर के इतिहास में, बल्कि देश के नक्सल विरोधी अभियानों में भी एक नई इबारत लिख गया है, हिंसा से शांति, भय से विश्वास और बंदूक से संविधान की ओर बढ़ते बस्तर की कहानी अब एक प्रेरक यथार्थ बन चुकी है।






