छत्तीसगढ़

भाजपा के 64 प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट का एनालिसिस:डॉ. रमन सिंह की पसंद चली, ओबीसी पर पार्टी मेहरबान, हिन्दुत्व का एजेंडा दिखा

रायपुर. भारतीय जनता पार्टी ने आचार संहिता लगने के साथ ही 90 फीसदी टिकटों पर प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। कश्मकश के बीच जब 64 नाम सामने आए, तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का चेहरा अनायास ही सामने आ गया। कारण ये कि इन सारे नामों पर उनकी मुहर लगी हुई दिखाई दे रही है।

यानी कि जो लोग एक जुमला बार-बार उछालते रहे कि डॉ. रमन सिंह हाशिए पर चले गए हैं, बड़ी खामोशी के साथ उन्हें करारा जवाब मिल गया है। जब नाम डॉ. सिंह के ईर्द-गिर्द वाले नजर आ रहे हैं, तो जाहिर है कि वक्त आया, तो बड़ी जवाबदारी उन्हें ही मिलेगी।

संविधान में “ओबीसी” शब्द की व्याख्या ही नहीं है, लेकिन राजनीति का एक बड़ा स्तंभ ओबीसी बन चुका है। भाजपा ने 31 सीटों पर ओबीसी प्रत्याशी उतारकर वर्ग को साधने की कोशिश की है। दावा किया जाता है कि ओबीसी वर्ग में साहू और कुर्मी समाज प्रमुख हैं। इनके अलावा अन्य भी हैं।

आदिवासी को हटाकर ओबीसी को बनाया अध्यक्ष
भाजपा ने पिछले साल अगस्त में ही आदिवासी समाज से विष्णुदेव साय को हटाकर ओबीसी समाज से अरुण साव को पार्टी का अध्यक्ष बनाया। कारण ओबीसी समाज को साधना था। इसके बाद पहली लिस्ट में जब 21 नाम घोषित किए गए, तब 4 साहू को और दूसरी लिस्ट में अरुण साव को मिलाकर 6 साहू को टिकट मिली। यानी भारतीय जनता पार्टी साहू समाज समेत ओबीसी वर्ग में खासी दस्तक दे चुकी है।

कांग्रेस कैसे साधेगी समाज और वर्गों को

भाजपा ने पहले 85 लोगों की सूची जारी करके कांग्रेस से बाजी मार ली है। सभी 29 आदिवासी सीटों और 10 अनुसूचित जाति की सीटों पर नाम जारी कर दिए हैं। इनके अलावा 31 ओबीसी सीटों पर प्रत्याशी दे दिए हैं।

कांग्रेस के अंदरुनी खानों से जो खबरें हैं, उसके मुताबिक सर्वे में कुछ जगह विधायकों से नाराजगी है। उनकी टिकट काटी जाती है, तो गुटबाजी बढ़ेगी, नहीं काटी जाती तो नुकसान का डर। ऐसे में कांग्रेस के लिए निर्णय लेना मुश्किल हो सकता है।

हिन्दुत्व का एजेंडा

अब भाजपा के एक और पक्ष पर चर्चा कर लेते हैं। पिछले पांच सालों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसान, धान, राम और गांव को जिस तरह से साधा है, भाजपा उससे चिंता में है। भाजपा के लिए हिंदुत्व एक बड़ा कार्ड है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उसकी काट के लिए काफी जतन किए हैं।
भूपेश का सॉफ्ट हिन्दुत्व

राम वनगमन पथ धार्मिक पर्यटन के रूप में जाना जा रहा है। कौशल्या माता मंदिर का उद्धार, रामायण मंडली को पैसे, अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव… ये सब ऐसे काम थे, जिसने भूपेश बघेल की छवि को हिन्दुवादी बनाने में मदद की, लेकिन भाजपा, कांग्रेस के शासन को कहीं न कहीं भगवा रंग के खिलाफ स्थापित करने की कोशिश कर रही है।

साजा और कवर्धा में भाजपा का हिन्दू कार्ड
साजा विधानसभा से ईश्वर साहू को टिकट दी गई है। ईश्वर साहू भुवनेश्वर साहू के पिता हैं, जिसकी सांप्रदायिक हिंसा में मौत हो गई थी। हाल ही में बिरनपुर हिंसा के आठ आरोपी बरी भी हो गए, तो प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने सरकार पर जमकर हमला बोला।

ठीक इसके बगल की सीट कवर्धा की है, जहां से मोहम्मद अकबर विधायक और मंत्री हैं। भाजपा ने यहां विजय शर्मा को टिकट दी है। कवर्धा में सांप्रदायिक तनाव हुए, तो भाजपा का झंडा बुलंद करने वाले नामों में विजय शर्मा आगे थे। यानी जहां-जहां हिन्दुत्व का रंग चढ़ सकता है, वहां भाजपा ने मौका दिया है।

दोनों सीटों के बहाने 8-10 सीटों पर फोकस
ये नहीं कहा जा सकता कि हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की इस कोशिश में भाजपा कितनी सफल होगी, लेकिन उसकी सोच में ये सिर्फ दो सीटों का मामला नहीं होगा। उसकी सोच होगी कि आसपास की तकरीबन 8 से 10 सीटों पर इसका प्रभाव पड़ेगा।

बीजेपी का नया फॉर्मूला

यहां कोई गुजरात फॉर्मूला या कर्नाटक फॉर्मूला नहीं है। भाजपा ने छत्तीसगढ़ का नया फॉर्मूला अपनाया है। गुजरात में तकरीबन सीटें बदल दी गई थीं, लेकिन यहां हारे हुए दिग्गजों को फिर मौका दिया जा रहा है। इन क्षेत्रों में इनके कद के बराबर कोई दूसरा नेता खड़ा भी नहीं हो पाया।

रायपुर पश्चिम से राजेश मूणत, बिलासपुर से अमर अग्रवाल, भिलाई नगर प्रेमप्रकाश पांडे, कोंडागांव से लता उसेंडी को इसी के मद्देनजर टिकट दी गई है। यहां तक बागी हो चुके संपत अग्रवाल को टिकट मिली है, क्योंकि पिछली बार निर्दलीय लड़कर दूसरे स्थान पर रहे थे।

रिश्तेदारों को टिकट
जो भाजपा परिवारवाद का विरोध करती है, उसने रिश्तेदारी में भी टिकट देने में कोताही नहीं बरती है। खुद डॉ. रमन सिंह के भांजे विक्रम सिंह को खैरागढ़ से टिकट मिली है।

जूदेव परिवार से दो लोगों को टिकट दी गई है। प्रबल प्रताप सिंह जूदेव कोटा से और संयोगिता सिंह जूदेव चंद्रपुर से लड़ने जा रही हैं।

यानी कहीं कोई फॉर्मूला नहीं है। भाजपा को जो जीत का फॉर्मूला नजर आ रहा है, वो उसी पर काम कर रही है।

महिलाओं को मौका देने में कंजूसी
हाल ही में मोदी सरकार ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया, तब यह लग रहा था कि छत्तीसगढ़ में महिलाओं को बड़ी संख्या में उतारकर भाजपा संदेश देना चाहेगी कि वह धरातल पर भी महिलाओं की समर्थक है, लेकिन दोनों लिस्ट मिलाकर कुल 14 सीटों पर ही महिलाओं को मौका दिया गया है।

अगर बची पांच सीटों पर भी सारी महिलाएं आ जाएं (जो संभव नहीं है), तो भी 21 फीसदी महिलाओं की भागीदारी ही सुनिश्चित होती है। फिलहाल तो 14 के हिसाब से 15 फीसदी ही मौका दिया गया है। पिछली बार भी 14 महिलाओं को ही टिकट दी गई थी।

यानी पार्टी उससे आगे बढ़ती नजर नहीं आ रही। राजनीति में कहना, करना और दिखना अलग-अलग होता है।

43 नए चेहरे उतारे, यही पब्लिक डिमांड थी

भाजपा के लिए एक अच्छी बात यह हो सकती है कि उसने 50 साल से कम उम्र के 34 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। 43 चेहरे नए उतारे हैं। भाजपा में लगातार यही बात होती रही कि चेहरे बदलने चाहिए।

जहां हारे, वहां नए चेहरे लेकर आए, लेकिन हारने के बाद भी दिग्गजों को बदलने का हौसला पार्टी नहीं कर पाई। इसमें राजेश मूणत, अमर अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडेय, लता उसेंडी, महेश गागड़ा जैसे नाम शामिल हैं।

जाहिर है जहां नया चेहरा होगा, वहां विरोध तेज होगा, लेकिन दिग्गजों के खिलाफ बोलने का हौसला न तो पार्टी कर पाएगी और न ही कार्यकर्ता। कुल मिलाकर दिग्गजों, विधायकों को टिकट देकर बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे आसपास की उन सीटों पर भी मेहनत करें, जहां नए चेहरे उतारे गए हैं।

देखना यह है कि भाजपा अब कितनी अग्रेसिव बैटिंग कर पाती है। समाजों को मौका देना अलग बात है और उसे वोट में तब्दील करना अलग बात। अभी कांग्रेस की लिस्ट नहीं आई है। इस लिस्ट के आने के बाद तय हो पाएगा कि कौन कितना मजबूत होगा…पिक्चर अभी बाकी है…

Ankita Sharma

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