ओपिनियन- आंदोलन:अब आरक्षण के लिए राजस्थान का जाट समाज आंदोलन की राह पर

राजस्थान एक बार फिर एक बड़े आंदोलन के मुहाने पर खड़ा है। आरक्षण के लिए सालों चले गुर्जर आंदोलन ने राज्य को झकझोर कर रख दिया था। वो 21 गुर्जरों की मौतें, आंदोलनकारियों पर पुलिस की गोलियाँ, अभी तक कोई भूला नहीं है।
लोग यह भी नहीं भूले हैं कि इतनी ज़्यादा मौतों और इतने बड़े संघर्ष के बावजूद समाज को ज़्यादा कुछ मिल नहीं पाया। अब इसी राह पर जाने का ऐलान राजस्थान के दो ज़िलों के जाट समाज के लोगों ने कर दिया है।
पूर्व मंत्री विश्वेन्द्र सिंह की अगुआई में भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज ने रेल रोकने का अल्टीमेटम केंद्र सरकार को दिया है। माँग यह है कि केंद्र इन दो ज़िलों के जाटों को ओबीसी के तहत आरक्षण दे वर्ना दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक जाम कर दिया जाएगा।

दरअसल पहले धौलपुर-भरतपुर और देश के कुछ अन्य ज़िलों के जाटों को ओबीसी आरक्षण दिया जा रहा था लेकिन 2015 के बाद केंद्र ने यह बंद कर दिया। जबकि वसुंधरा सरकार ने राज्य में इन दो ज़िलों को यह सुविधा दी थी।
पिछली अशोक गहलोत सरकार ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा था कि इन दो ज़िलों में केंद्र की तरफ़ से ओबीसी के तहत जाट समाज को रखा जाना चाहिए। लेकिन हुआ कुछ नहीं। जाट समाज ने आरक्षण के लिए आंदोलन का निर्णय हुंकार सभा में लिया।
इस हुंकार सभा के लिए समाज की ओर से लोगों को पीले चावल भेज- भेजकर निमंत्रण दिये गये थे। बड़ी संख्या में समाज के लोग इस सभा में शामिल भी हुए। सभा में विश्वेंद्र सिंह ने ऐलान किया कि केंद्र ने जाटों को आरक्षण नहीं दिया तो आने वाले लोकसभा चुनाव में जाट समाज भाजपा को वोट नहीं देगा।

इसके पहले हरियाणा में भी जाट समाज आंदोलन कर चुका है। वहाँ हालात काफ़ी हिंसक होकर सामने आए थे। राजस्थान सरकार को केंद्र से बात कर जल्द कुछ करना चाहिए। जाट समाज का अल्टीमेटम ख़त्म होने से पहले निश्चित ही बातचीत से मामले का हल निकाला जाना ज़रूरी है।
वैसे सवाल यह उठता है कि जब धौलपुर- भरतपुर ज़िले के जाटों को पहले आरक्षण की सुविधा मिल रही थी तो उसे बंद करने की ज़रूरत क्या थी? कोई भी समाज आंदोलित तभी होता है जब उसके साथ किसी समय कोई अन्याय होता है या जानबूझ कर किया जाता है। सरकारें यह काम जब तब करती रहती हैं।