ओपिनियन- शिवराज सबसे अलग:मुख्यमंत्री पद का फ़ैसला करते वक्त, मप्र के बारे में अलग से सोचा जाएगा
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मुख्यमंत्री पद पर कौन बैठेगा, यह तय करने में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को भले ही देर लग रही हो, लेकिन यह तय है कि अगले छत्तीस घंटों में तीनों जगह का फ़ैसला हो जाएगा। इस बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए दावेदार अलग-अलग पैंतरे आज़मा रहे हैं।
तीनों राज्यों के दावेदार बारी- बारी से दिल्ली दौड़ रहे हैं। सबके अपने अलग अंदाज भी हैं। राजस्थान के दावेदारों का अनोखा तरीक़ा है। छत्तीसगढ़ वाले ज़्यादा कुछ कर नहीं पा रहे हैं, क्योंकि यहाँ भाजपा की जीत में स्थानीय नेताओं का कोई ख़ास योगदान नहीं है।
मध्य प्रदेश का मामला बाक़ी दोनों राज्यों से एकदम अलग है। यहाँ शिवराज सिंह चौहान के अलावा तमाम नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। एक शिवराज ही हैं जो किसी दावेदारी के लिए दिल्ली कूच नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बाक़ायदा घोषणा कर दी है कि वे दिल्ली नहीं जाएँगे क्योंकि वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में न पहले कभी थे और न ही अब हैं।
यह हुआ उनका राजनीतिक बयान। कर वे भी वही रहे हैं, लेकिन अलग और अनोखे अंदाज में। वे पहले लाड़ली बहनों के पास गए। उनके साथ बैठे, भोजन किया। इशारा यही था कि ये जो दो तिहाई से ज़्यादा सीटें मिली हैं, उनमें सर्वाधिक योगदान लाड़ली बहनों का ही है। यानी शिवराज सिंह का योगदान है।
इसके बाद उन्होंने कुछ ज़्यादा आगे की सोची। कहा- मैं अब छिंदवाड़ा जा रहा हूँ। वहाँ जो एक मात्र लोकसभा सीट कांग्रेस के पास है, मैं उसे भी भाजपा के पक्ष में करना चाहता हूँ। संकेत सीधा था कि वो केवल शिवराज ही हैं जो अपने दम पर मोदी जी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की राह में मध्य प्रदेश की पूरी 29 सीटें लाकर रख सकता है।
इसे राजनीतिक रूप से एक उदार अपील भी समझ सकते हैं और एक कड़ी चेतावनी भी। दरअसल, शिवराज सिंह चतुर राजनेता हैं। वे उदारता के साथ अपनी बात कह जाते हैं। उसी में उनकी उदारता भी होती है और चेतावनी भी। आप चाहो तो उसे एक तरह की धमकी भी मान सकते हैं।
लेकिन वे कह सकते हैं कि उन्होंने धमकी जैसा कड़ा शब्द कभी इस्तेमाल किया ही नहीं। हो सकता है शिवराज ही सही हों, और उन्हें उनका हक़ मिलना भी चाहिए। सही है, तीनों राज्यों में भाजपा ने किसी का नाम या चेहरा घोषित नहीं किया था, लेकिन पार्टी को जिताने के लिए जिस तरह शिवराज सिंह दिन-रात लगे रहे, उस तरह कोई नहीं जुटा था।
230 में से 163 सीटों पर विजय वाला चुनाव परिणाम भी यह बताता है। ख़ैर, बाक़ी राज्यों में जो भी हो, लेकिन मध्य प्रदेश की बात जब भी चलेगी, केंद्रीय नेतृत्व शिवराज के बारे में अलग से विचार ज़रूर करेगा। तीनों राज्यों में एक ही सूत्र काम नहीं करेगा।