कवर्धा में मध्यरात्रि तीन मंदिरों से निकलेगी खप्पर, बरसों पुरानी परंपरा आज भी है जीवित
कवर्धा। शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर कवर्धा में एक बार फिर से सदियों पुरानी परंपरा अनुसार आज रात मां दंतेश्वरी, मां चंडी और मां परमेश्वरी के मंदिरों से खप्पर निकाली जाएगी। यह अनुष्ठान मध्यरात्रि को शुरू होगा और नगर के प्रमुख मार्गों में मंदिरों के समक्ष खप्पर भ्रमण करेगी, जो देवी देवताओं का आह्वान करने का प्रतीक है। यह अनुष्ठान कवर्धा की संस्कृति एवं धार्मिक आस्था का एक प्रमुख केंद्र बिंदु बन गया है।
खप्पर निकालने की परंपरा का ऐतिहासिक महत्व
कवर्धा में यह धार्मिक परंपरा सदियों से चली आ रही है। खप्पर निकालने का यह अनुष्ठान देवी देवताओं की कृपा प्राप्त करने और आपदाओं से मुक्ति के उद्देश्य से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि खप्पर देवी माता का प्रतीक है, जिसे माता स्वरुप एक व्यक्ति नगर में भ्रमण कराता है, और इस दौरान देवी माता की कृपा उन पर बनी रहती है।
खप्पर को एक काले मिट्टी के पात्र के रूप में जाना जाता है, जिसमें जलती हुई आग रखी जाती है। इस खप्पर को नगर भ्रमण के लिए निकाला जाता है और देवी की कृपा से नगर में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की जाती है। खप्पर के साथ एक अगवान तेज धार वाली तलवार हाथ में लहराते हुए देवी के मार्ग को सुरक्षित रखते हैं। इस अनुष्ठान में खप्पर के माध्यम से श्रद्धा और भक्ति के साथ देवी का आह्वान करते हैं और देवी की शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
तीन मंदिरों से निकलेगा खप्पर
आज रात कवर्धा के तीन प्रमुख देवी मंदिरों—मां दंतेश्वरी, मां चंडी और मां परमेश्वरी से एक के बाद एक खप्पर निकाला जाएगा। मां दंतेश्वरी मंदिर से खप्पर रात 12:20 बजे निकलेगा, इसके बाद मां चंडी मंदिर से 12:30 बजे, और अंत में मां परमेश्वरी मंदिर से 12:40 बजे खप्पर निकाला जाएगा। यह खप्पर नगर के प्रमुख मार्गों से गुजरेगा और देवी देवताओं का आह्वान करेगा। नगर के विभिन्न हिस्सों में भक्त खप्पर का दर्शन करने के लिए एकत्रित होंगे, और रास्तों के किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी ताकि वे देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
खप्पर निकालने की प्रक्रिया
खप्पर निकालने की प्रक्रिया अत्यंत विशेष होती है। खप्पर को निर्धारित समय पर मंदिर से निकाला जाता है और इसे एक व्यक्ति हाथ में लेकर चलता है। उसके एक हाथ में जलता हुआ खप्पर और दूसरे हाथ में तेज धार वाली तलवार होती है। साथ में अगवान पंडा तलवार को लहराते हुए देवी के मार्ग को सुरक्षित रखते हैं ताकि किसी भी प्रकार की रुकावट न हो। मार्ग में देवी को शांत करने के लिए मंदिर के दर्जनों पुजारी और अन्य धार्मिक व्यक्ति साथ रहते हैं। खप्पर निकालने के दौरान नगर में पुलिस प्रशासन द्वारा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जाती है ताकि किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो, तथा धार्मिक परंपरा को शांति से संपन्न करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाता है।
खप्पर के साथ जुड़ी प्राचीन मान्यताएं
कवर्धा में खप्पर निकालने की परंपरा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। प्राचीन समय में खप्पर का स्वरूप अत्यंत रौद्र और भयावह माना जाता था। आज से पांच दशक पहले तक खप्पर का दर्शन करना तो दूर, उसकी गूंज से ही लोग घरों में छिप जाते थे। घरों के दरवाजे और खिड़कियों से पलभर के लिए खप्पर का दर्शन करना भी साहसिक कार्य माना जाता था। समय के साथ इस परंपरा का स्वरूप बदल गया है और अब यह धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया है।
आज खप्पर निकालने की यह परंपरा कवर्धा की धार्मिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। नगर के लोग इस अनुष्ठान को बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ निभाते हैं।
धार्मिक अनुष्ठानों के साथ भव्य आयोजन
नवरात्रि के अवसर पर कवर्धा के सभी प्रमुख देवी मंदिरों में हवन पूजन और कन्या भोज का आयोजन भी किया गया। मां चंडी, मां महामाया, मां काली, मां विन्ध्यवासिनी, और अन्य देवी मंदिरों में श्रद्धालु पूजा अर्चना कर रहे हैं। आज सुबह 9 बजे से हवन पूजन की शुरुआत हुई, जिसके बाद कन्या भोज का आयोजन किया गया। देवी मां की पूजा में भक्तों का उत्साह चरम पर है और पूरे नगर में नवरात्रि के उल्लास और भक्तों की आस्था का माहौल बना हुआ है।
सुरक्षा प्रबंध और श्रद्धालुओं की सुविधा
खप्पर निकालने के इस भव्य आयोजन को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए पुलिस प्रशासन ने विशेष सुरक्षा इंतजाम किए हैं। नगर के प्रमुख चौराहों पर पुलिस बल तैनात है और खप्पर के आगे-पीछे पुलिस जवान भी मौजूद रहेंगे।