24 और 25 मार्च को रहेगी फाल्गुन पूर्णिमा:प्रहलाद के साथ ही कामदेव और बसंत ऋतु से जुड़ी है होली की मान्यता, नई फसल के आने पर मनाते हैं उत्सव
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इस साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा 24 और 25 मार्च को रहेगी, लेकिन होलिका दहन 24 मार्च की रात में किया जाएगा। होलिका दहन रात में किया जाता है और 24 मार्च की रात पूर्णिमा रहेगी, जबकि 25 मार्च की दोपहर करीब 12 बजे तक ही पूर्णिमा तिथि है, इसलिए 24 मार्च की रात में होलिका दहन किया जाएगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अभी होलाष्टक चल रहा है और इन दिनों भक्ति, पूजा-पाठ करने का महत्व काफी अधिक है। फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है। इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं हैं, लेकिन प्रहलाद और होलिका से जुड़ी मान्यता सबसे ज्यादा प्रचलित है। यहां जानिए होली से जुड़ी कुछ अन्य मान्यताएं कौन-कौन सी हैं…
भक्त प्रहलाद और होलिका से जुड़ा किस्सा
पुराने समय में असुरों के राजा हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी का भक्त था। हिरण्यकश्यपु इसी बात से अपने ही पुत्र प्रहलाद से इतना क्रोधित हो गया कि वह उसे मारने की कोशिश करने लगा। असुरराज ने प्रहलाद को कई यातनाएं दीं, लेकिन हर बार विष्णु कृपा से प्रहलाद सकुशल बच गया। हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था। फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई, ताकि प्रहलाद का अंत हो सके, लेकिन विष्णु जी की कृपा प्रहलाद तो बच गया और होलिका जल गई। बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। इसी जीत की खुशी में हर साल होलिका दहन किया जाता है।
शिव जी और कामदेव से जुड़ा किस्सा
फाल्गुन पूर्णिमा के आसपास से ही बंसत ऋतु शुरू होती है। बसंत ऋतु के स्वागत में उत्सव मनाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। बसंत को ऋतुओं का राजा कहते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक, कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए बसंत ऋतु को प्रकट किया था। इसके बाद शिव जी की तपस्या भंग हो गई थी। कामदेव के क्रोधित होकर शिव जी ने उन्हें भस्म कर दिया था। बाद में जब शिव जी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कामदेव को श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। माना जाता है, जिस ये घटना हुई थी, उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा ही थी। बसंत ऋतु के आगमन की खुशी में रंगों से खेलकर उत्सव मनाया जाता है।
नई फसल के पकने पर मनाते हैं उत्सव
पुराने समय से ही नई फसल पकने पर उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। ये समय गेहूं-चने की फसल आने का समय है। फसल का पकना किसानों के लिए उत्सव मनाने की बात ही है। ये फसल पकने की खुशी में होली मनाने की परंपरा है। किसान जलती हुई होली में नई फसल का कुछ भाग भगवान को भोग के रूप अर्पित करते हैं। जलती हुई होली के आसपास खुशियां मनाते हैं।