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छात्राओं से छेड़छाड़ के आरोपित शिक्षकों की बहाली से मचा हड़कंप, चार दिन में रद्द हुआ निलंबन

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा विद्यालयों में छात्राओं की सुरक्षा को लेकर सख्त निर्देश दिए जाने के बावजूद बिलासपुर में दो शिक्षकों को छेड़छाड़ जैसे गंभीर आरोपों के बाद बहाल कर देने पर शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

हेड मास्टर को चार दिन में क्लीन चिट और बहाली

बिलासपुर के हेड मास्टर रामकिशोर निर्मलकर को 15 मई 2025 को एक छात्रा के साथ बैड टच करने के आरोप में निलंबित किया गया था। साथ ही उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था। मात्र चार दिन के भीतर डीईओ कार्यालय ने उनके जवाब को “संतोषजनक” मानते हुए न केवल बहाल कर दिया, बल्कि शासकीय प्राथमिक शाला, महमंद संकुल, बिल्हा में पदस्थ कर भी दिया।

डीईओ द्वारा जारी आदेश में उल्लेख किया गया है कि आरोपित शिक्षक से प्राप्त जवाब का परीक्षण किया गया है और विभागीय जांच लंबित है। बावजूद इसके, आरोपी शिक्षक को स्कूल में पुनः पदस्थ कर दिया गया।

दूसरे शिक्षक पर FIR के बावजूद बहाली

इसी प्रकार तखतपुर विकासखंड में पदस्थ सहायक शिक्षक (एलबी) अशोक कुमार कुर्रे पर छात्राओं से अश्लील हरकत करने और छेड़खानी के आरोप लगे थे। अभिभावकों की शिकायत पर जांच कराई गई, जिसमें आरोप सिद्ध हुए। डीईओ ने शिक्षक को निलंबित किया और तखतपुर थाने में उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज है। लेकिन हाल ही में डीईओ ने आदेश जारी कर उन्हें भी बहाल कर दिया है और प्राथमिक शाला जरेली, तखतपुर में पुनः पदस्थ कर दिया है।

मुख्यमंत्री के निर्देशों की खुली अवहेलना

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कई मौकों पर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि विद्यालयों में छात्राओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा और छेड़छाड़ के मामलों में ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई जाएगी। इसके बावजूद महज कुछ ही दिनों में गंभीर आरोपितों की बहाली ने अधिकारियों की नीयत और संवेदनशीलता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।

शिक्षा विभाग की चुप्पी और जनाक्रोश

इन घटनाओं को लेकर अभिभावकों, शिक्षक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखी जा रही है। उनका कहना है कि जब तक आरोपों की विभागीय जांच पूरी नहीं हो जाती, ऐसे शिक्षकों को विद्यालयों से दूर रखा जाना चाहिए, ताकि छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

क्या कहता है नियम?

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि निलंबन कोई सजा नहीं, बल्कि जांच प्रक्रिया का हिस्सा होता है। ऐसे में गंभीर आरोपों में घिरे शिक्षकों की इतनी जल्दी बहाली विभाग की संवेदनशीलता पर सवाल उठाती है। यह छात्राओं की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।

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News Desk

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