क्या है श्रावण मास का महत्व: शिव-शक्ति को समर्पित सावन मास, जानें महत्व
श्रावण मास का महत्व
श्रावण मास, जिसे सावन के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार सबसे पवित्र महीनों में से एक है। इस माह का विशेष महत्व है क्योंकि यह भगवान शिव और शक्ति को समर्पित होता है। श्रावण मास में भक्तगण पूरे महीने व्रत, पूजा और ध्यान करते हैं, जिससे उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को विशेष महत्व दिया जाता है, जिन्हें ‘श्रावण सोमवार’ कहा जाता है। इन सोमवार को भगवान शिव की पूजा विशेष रुप से की जाती है। शिव भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा निभाते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्रावण सोमवार का व्रत रखने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
इस महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। जलाभिषेक के दौरान गंगा जल, दूध, दही, शहद और घी का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया को पंचामृत स्नान के नाम से जाना जाता है। इसके बाद बेलपत्र, धतूरा, और आक के फूल चढ़ाए जाते हैं, जिन्हें भगवान शिव को अत्यंत प्रिय माना जाता है।
श्रावण मास में शिव पूजन के साथ-साथ शक्ति की उपासना भी की जाती है। यह महीना देवी पार्वती की आराधना का भी समय होता है, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। इस दौरान महिलाएं विशेषकर सौभाग्य और सुख-शांति की कामना के लिए देवी पार्वती की पूजा करती हैं।
श्रावण मास की धार्मिक गतिविधियों से न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस महीने में आयोजित होने वाले मेलों और उत्सवों से समाज में उत्साह और उमंग का माहौल बनता है। इन सभी कारणों से श्रावण मास हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूजनीय समय माना जाता है।
शिवजी को क्यों प्रिय है सावन
श्रावण मास, जिसे सावन के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के लिए अत्यंत प्रिय माना जाता है। इसके पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो इस महीने के महत्व को और भी बढ़ा देती हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत की खोज की जा रही थी, तब विभिन्न रत्नों और विष का भी उद्भव हुआ। उस विष की तीव्रता इतनी थी कि सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखता था।
उस समय भगवान शिव ने विष का पान कर उसे अपने कंठ में धारण किया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाने लगे। विष की उष्णता को शांत करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया था। यह घटना श्रावण मास में ही हुई थी, और इसीलिए इस महीने में शिवजी को जल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
श्रावण मास में शिव भक्तों द्वारा शिवलिंग पर जलाभिषेक करने की परंपरा का भी यही मूल है। इस महीने में किए गए जलाभिषेक से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। धार्मिक मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त, श्रावण मास में प्राकृतिक सौंदर्य भी अपने चरम पर होता है। वर्षा ऋतु के कारण चारों ओर हरियाली छा जाती है, जो भगवान शिव के प्रकृति प्रेम को दर्शाती है। शिवजी को जल, बेलपत्र, धतूरा, और आक का फूल अत्यंत प्रिय होते हैं, और इन सभी चीजों का इस महीने में विशेष महत्व होता है।
इस प्रकार, श्रावण मास का धार्मिक और पौराणिक महत्व भगवान शिव के प्रति विशेष श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करता है, जिससे यह महीना शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
सावन की पूजा विधि और रिवाज
सावन मास हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, विशेषतः भगवान शिव की पूजा के लिए। इस महीने में, भक्त विशेष विधि-विधान से शिवलिंग की आराधना करते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखने का विशेष महत्व है, जिसे श्रावण सोमवार व्रत कहा जाता है। इस व्रत को रखने वाले भक्त उपवास रखते हैं और शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाते हैं। यह माना जाता है कि इस विधि से पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सावन के दौरान भगवान शिव की पूजा की प्रक्रिया बहुत ही विशेष होती है। सबसे पहले भक्त शिवलिंग को गंगा जल या शुद्ध जल से स्नान कराते हैं, जिसे जलाभिषेक कहते हैं। इसके बाद दूध, दही, शहद और घी से अभिषेक किया जाता है। अंत में, बेलपत्र, धतूरा, और भांग चढ़ाए जाते हैं। विशेष मंत्रों का जाप भी पूजा के दौरान किया जाता है, जिससे पूजा की पवित्रता और प्रभावशीलता बढ़ जाती है।
सावन सोमवार को मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्तगण भक्ति गीतों के माध्यम से भगवान शिव की स्तुति करते हैं और मंदिरों में कीर्तन और भजन का आयोजन होता है। इस माहौल में भक्ति और श्रद्धा का विशेष महत्व होता है। अनेक भक्त कांवड़ यात्रा में भी हिस्सा लेते हैं, जिसमें वे पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
सावन मास में भगवान शिव की आराधना का यह परंपरागत तरीका भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन लाता है। इस मास का महत्व ऐसा है कि यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। सावन की पूजा विधि और रिवाजों का पालन करके भक्त भगवान शिव की कृपा से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि पा सकते हैं।
सावन 2024 के विशेष तिथियाँ और उत्सव
सावन 2024 का महत्व अद्वितीय है और यह मास शिव-शक्ति को समर्पित होता है। इस साल श्रावण मास 22 जुलाई को प्रारंभ होगा और 19 अगस्त को समाप्त होगा। इस अवधि में आने वाले प्रमुख तिथियों और उत्सवों का विशेष महत्व है।
सावन सोमवार, जो भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष माने जाते हैं, इस बार 22 जुलाई, 29 जुलाई, 5 अगस्त, 12 अगस्त और 19 अगस्त को होंगे। इन दिनों में शिव भक्त विशेष उपवास रखते हैं और मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं।
इसके अलावा, नाग पंचमी का त्योहार 9 अगस्त को मनाया जाएगा। यह पर्व नाग देवता की पूजा के लिए प्रसिद्ध है और इस दिन विशेष रूप से नागों का अभिषेक किया जाता है। हरियाली तीज, जो मुख्यतः महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, 7 अगस्त को होगी। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।
सावन मास के दौरान विभिन्न शिव मंदिरों में भी अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर, और केदारनाथ जैसे प्रमुख शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और भंडारों का आयोजन होता है। इन आयोजनों में भक्त बड़ी संख्या में भाग लेते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
श्रावण मास की इन तिथियों और उत्सवों का विशेष महत्व है और यह समय धार्मिक आस्था और उत्साह से भरपूर होता है। विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से भक्त इस मास को उल्लास और श्रद्धा से मनाते हैं।
सावन के व्रत त्योहार
22 जुलाई 2024, सोमवार – पहला सावन सोमवार व्रत
23 जुलाई 2024, मंगलवार – पहला मंगला गौरी व्रत
24 जुलाई 2024, बुधवार – गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत
27 जुलाई 2024, शनिवार – कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
29 जुलाई 2024, सोमवार – दूसरा सावन सोमवार व्रत
30 जुलाई 2024, मंगलवार – दूसरा मंगला गौरी व्रत
31 जुलाई 2024, बुधवार – कामिका एकादशी
05 अगस्त 2024, सोमवार – तीसरा सावन सोमवार व्रत
06 अगस्त 2024, मंगलवार – तीसरा मंगला गौरी व्रत, मासिक दुर्गाष्टमी
08 अगस्त, 2024, गुरुवार – विनायक चतुर्थी
09 अगस्त 2024, शुक्रवार – नाग पंचमी
12 अगस्त 2024, सोमवार – चौथा सावन सोमवार व्रत
13 अगस्त 2024, मंगलवार – चौथा मंगला गौरी व्रत, मासिक दुर्गाष्टमी
16 अगस्त, 2024, शुक्रवार – पुत्रदा एकादशी
19 अगस्त 2024, सोमवार – रक्षा बंधन, पांचवां सावन सोमवार व्रत, सावन समाप्त